एक सैल्यूट सभी अर्थ-सैनिकों (बैंकर्स) के नाम

डॉ. स्मिता गौतम

कंसल्टेंट् होम्योपैथ एवं योग थेरापिस्ट

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्रभाई के आन्तरिक कालेधन के सफाये के लिए उठाये अप्रत्याशित नोटबंदी के फैसले ने विश्व राजनीति- अर्थनीति की दुनिया में सुनामी ला दी. देशवाशियों को कष्ट उठाना पड़ेगा, इस बात का आगाह प्रधानमंत्री ने पहले ही अपने राष्ट्रीय-उद्बोधन में कर दिया था. जैसा की अनुमानित था, उन नागरिकों से लेकर जो बड़े नोट घर में रखने में ज्यादा विश्वास रखते थे, गृहणियां और दैनिक मजदूरी करके अपना गुजारा चलाने वाले सभी नोट बदलने के लिए लम्बी-लम्बी कतारों में बैंक में उमड़ने लगे. प्रिंट- इलेक्ट्रोनिक मीडिया का रोल बैंकों के बाहर लगी कतारों को हीरो बनाने में ज्यादा रहा; जबकि एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले देश का ‘भारतीय अर्थ-तंत्र’ पर विश्सनीयता का भारी उत्तरदायित्व अपने संख्या में कम परन्तु अपने मज़बूत कन्धों पर लिए ‘अर्थ-सैनिकों’ के ऊपर अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा.

 

ये ‘अर्थ-सैनिकों’ अन्य किसी भी सैन्य-बल की तरह बिना कुछ बोले, आदेश का पालन कर रहे हैं, शायद अपनी कर्तव्य-निष्ठा से देशवासियों को बताना चाहते हैं कि वह लोग देश की आवश्यकता की घड़ी में अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार हैं. ८ तारीख से ही चल रहा है कि कुछ लोगों की शादी की प्रॉब्लम है तो कहीं कोई बीमार है, परन्तु इन अर्थ-सैनिकों के बारे में कोई नहीं लिख रहा कि उनके परिवार में किस तरह का माहौल होगा किस तरह छोटे-छोटे बच्चे अपने पापा या मम्मी के इंतजार में आंसू बहा के सो जाते हैं. उनके घर में सब्जी कैसे आती होगी? खाना कैसे बनता होगा? (उनके ऊपर भी नोट बदलने का वही कानून लागु होता है जन सामान्य के लिए है)

 

कई लोग जो अपने परिवार से दूर रह कर नौकरी कर रहे हैं और एक शनिवार-रविवार का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, ताकि अपने परिवार से मिल सके, इस नोट-बंदी नियम बाद घर-परिवार एक सपना हो गया है. आज बैंकिंग में काफी बड़ी संख्या में युवती काम करती हैं, जिनके बहुत ही छोटे बच्चे हैं, उन्हें शिशु-पान कराने का भी समय नहीं मिल पा रहा है. ऐसी भी घटनाएं भी सामने आयीं है कि कई ‘अर्थ-सैनिकों’ की अपने कार्य के दौरान जान भी चली गयी. हम लोग समझते हैं कि पब्लिक का बैंक टाइम खत्म होते ही इन ‘अर्थ-सैनिकों’ का काम खत्म हो जाता है जबकि हकीकत में उसके बाद उन्हें पूरे दिन का हिसाब-किताब मिला कर रखना पड़ता है, इतनी अफरा-तफरी के बीच इनको काम करना पद रहा है कि हिसाब किताब में चूक होना स्वाभाविक है जिस कारण से कई बार तो रात के बारह-एक-दो भी बज रहे हैं. न केवल ये, गलती से ज्यादा रकम का भुगतान कर देने पर खोट की रक़म उन्हें अपने व्यक्तिगत खाते से भरनी पड़ती हैं.

 

मेरा इन सब बातों को बताने का अर्थ यह कतई नहीं कि इस तरह के कर्तव्यनिष्ठ लोक सेवकों के प्रति कोई सहानभूति पैदा करना बल्कि आज उनको उसी प्रकार का आदर सम्मान मिलना चाहिए जो देश के अन्य सैन्य बल को मिलता हैं क्यूंकि देश यदि आतंरिक रूप से मज़बूत होगा तभी उसकी सीमायें सुरक्षित होंगी और यदि देश को अन्दर से मज़बूत करना है तो इन अर्थ-सैनिकों का उत्साह बढ़ाये रखना होगा.

 

अंत में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्रभाई को खूब-खूब अभिनन्दन जिनकी दूर-दर्शिता ने ‘व्हाट्-कॉलर बैंकर्स’ को राष्ट्रप्रेम में समर्थित ‘अर्थ-सैनिक’ बदल दिया.

 

स्वस्थ राष्ट्र, स्वस्थ तन और मन की कामना के साथ जय हिन्द